SIP: निवेश के लिए SIP का तरीका तेजी से निवेशकों को आकर्षित कर रहा है. इसके जरिए न सिर्फ निवेश को लेकर अनुशासन बना रहता है बल्कि बाजार के उतार-चढ़ाव से जुड़े रिस्क को भी कम करने में मदद मिलती है. हालांकि एसआईपी के जरिए निवेश शानदार विकल्प तो है, लेकिन इसमें कितने समय अंतराल पर निवेश करना चाहिए, इसे लेकर बड़ी उलझन रहती है. हर दिन, पंद्रह दिन में, हर महीने, या सालाना; कितने अंतर में निवेश करना बेहतर होगा, इसका आकलन पैसे लगाने से पहले जरूर समझ लेना चाहिए ताकि रिटर्न को अधिकतम किया जा सके.
SIP की फ्रीक्वेंसी चुनते समय इन बातों का रखें ख्याल
- अगर लंबे समय तक निवेश किया जा रहा है तो डेली, वीकली या मंथली एसआईपी में कुछ खास फर्क नहीं होता है. हालांकि डेली एसआईपी में मॉनीटरिंग की दिक्कत आ सकती है. मासिक एसआईपी उनके लिए बेहतर साबित हो सकता है जिन्हें हर महीने एक दिन सैलरी मिल रही है. ऐसे लोग अपनी सैलरी डेट के आस-पास एसआईपी डेट चुन सकते हैं. डेली एसआईपी ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर हो सकता है जो किसी कारोबार में हैं या किसी ऐसे पेशे में हैं जिसमें हर दिन आय होती है.
- अगर फंड का पैसा मिड-कैप और स्माल कैप स्टॉक्स में लगाया जा रहा है तो डेली एसआईपी पर असर पड़ सकता है. आमतौर पर स्माल कैप फंड्स में अधिक वोलैटिलिटी रहती है तो इनमें डेली एसआईपी में मासिक एसआईपी की तुलना में अधिक वोलैटिलिटी रह सकती है. अगर मार्केट बढ़ रहा तो डेली एसआईपी में रिटर्न बढ़ेगा. हालांकि डेली एसआईपी के जरिए लार्ज कैप फंड्स में निवेश पर रिटर्न लगभग स्थिर रहेगा यानी वोलैटाइल नहीं होगा.
- डेली एसआईपी में मिलने वाला रिटर्न फंड मैनेजमेंट की क्षमताओं पर भी निर्भर करता है तो ऐसे में इससे चुनने से पहले म्युचुअल फंड की रणनीति पर जरूर विचार कर लें.
- अगर फंड वोलैटाइल नहीं है तो डेली एसआईपी की तुलना में मंथली एसआईपी के जरिए अधिक रिटर्न हासिल किया जा सकता है.
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एकमुश्त की बजाय SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश बेहतर
म्यूचुअल फंड में दो तरीके से निवेश कर सकते हैं-एकमुश्त या नियमित अंतराल पर यानी कि एसआईपी. इन दोनों तरीकों की अपनी खासियतें हैं लेकिन एसआईपी के जरिए पैसे लगाने का फायदा यह होता है कि इसके जरिए मार्केट वोलैटिलिटी का फायदा उठाते हुए फंड लागत को न्यूनतम किया जा सकता है. इसका मतलब हुआ कि एकमुश्त पैसे लगाने पर उस समय जो एनएवी (नेट एसेट वैल्यू) रहती है, उसके हिसाब से फंड के यूनिट्स मिल जाते हैं और फिर उसमें तेजी या गिरावट के हिसाब से रिटर्न मिलता है. इसके विपरीत एसआईपी के केस में अगर एनएवी गिरती है तो अधिक यूनिट्स मिलता है और इसके ऊपर चढ़ने पर कम एनएवी मिलती है और इस प्रकार लंबे समय में औसत एनएवी के हिसाब से निवेश की गई पूंजी पर बेहतर रिटर्न सुनिश्चित किया जा सकता है.
(इनपुट: क्लियरटैक्स)