बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों के हित में अहम फैसला लिया है. अब म्यूचुअल फंड कंपनियां अपनी मर्जी से किसी भी योजना को बंद नहीं कर सकती हैं. सेबी ने निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए म्यूचुअल फंड नियमों को सख्त बना दिया है और अब किसी भी योजना को बंद करने से पहले यूनिटधारकों यानी निवेशकों की मंजूरी लेनी होगी. सेबी के नियमों के मुताबिक अब अगर म्यूचुअल फंड के ट्रस्टी बहुमत से किसी योजना को बंद करने या समय से पहले रिडीम करने का फैसला करते हैं तो उन्हें म्यूचुअल फंड यूनिटधारकों की सहमति लेने की जरूरत होगी. सेबी ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर लिया है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि बिना यूनिटधारकों की मंजूरी के म्यूचुअल फंड हाउस कोई योजना नहीं बंद कर सकते हैं.
एक यूनिट यानी एक वोट के आधार पर फैसला
सेबी के नए नियमों के मुताबिक ट्रस्टीज को प्रति यूनिट एक वोट के आधार पर उपस्थित और मतदान करने वाले यूनिटधारकों के साधारण बहुमत से सहमति हासिल करनी होगी. जब ट्रस्टीज किसी योजना को बंद करने का फैसला लेते हैं तो एक दिन के भीतर नियामक को इसकी जानकारी देंगे. इसमें योजना को बंद करने की वजह बतानी होगी. इसके बाद यूनिटधारकों से वोटिंग कराई जाएगी औऱ फिर नोटिस के प्रकाशन के 45 दिनों के भीतर इसके रिजल्ट्स का एलान करना होगा. अगर ट्रस्टी यूनिटधारकों की सहमति हासिल करने में सफल नहीं होती है तो वोटिंग रिजल्ट सामने आने के अगले ही दिन से वह योजना फिर कारोबारी गतिविधियों के लिए खुल जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आया फैसला
सेबी का यह फैसला पिछले साल जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने फ्रैंकलिन टेंप्लेटन म्यूचुअल फंड की छह डेट स्कीम को बंद किए जाने से जुड़ी एक याचिका पर एक फैसला सुनाया था. फंड हाउस ने 23 अप्रैल 2020 को छह डेट म्यूचुअल फंड योजनाओं को बंद कर दिया था और इसके लिए रिडेंप्शन के दबाव व बॉन्ड मार्केट में लिक्विडिटी की कमी को वजह बताया था. इसे लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि किसी भी योजना को बंद करने से पहले ट्रस्टीज को म्यूचुअल फंड स्कीम के यूनिटहोल्डर्स का बहुमत हासिल करना होगा.