Income Tax Slabs: देश में कुछ टैक्स स्लैब ऐसे हैं जिनमें पिछले 10 सालों से कोई बदलाव नहीं किया गया है. 20 फीसदी और 30 फीसदी का टैक्स स्लैब्स के (Tax Slabs) में आखिरी बार 2013 में बदलाव किए गए थे. फिलहाल 5 लाख रुपये या इससे ज्यादा की आय पर 20 फीसदी टैक्स लगता है और 10 लाख रुपये से ऊपर के इनकम 30 फीसदी टैक्स देना होता है. टैक्सपेयर्स इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब उनके इनकम को इन्फ्लेशन के हिसाब से एडजस्ट किया जाता है तो उनका ‘रियल’ रेट टैक्स और बढ़ जाता है. गौरतलब है कि एप्लीकेबल सरचार्ज (Surcharge) और सेस (Cess) के साथ इनकम टैक्स की हाइएस्ट मार्जिनल रेट 30 फीसदी है. लेकिन टैक्स ब्रैकेट 2013 से बदले नहीं हैं, इसलिए 30 फीसदी ब्रैकेट में आने वाले लोग 42% से 50% की स्लैब रेट का भुगतान कर रहे हैं. जबकि 12 लाख रुपये की टैक्सेबल इनकम वाला कोई भी व्यक्ति 49,327 रुपये या 4111 रुपये प्रति माह का एक्स्ट्रा टैक्स चुका रहा है. आइये जानते हैं इस समस्या से निपटने के लिए क्या करने की है जरूरत?
टैक्स ब्रैकेट बढ़ाने की जरूरत
पिछले 10 सालों से चले आ रहे पुराने टैक्स स्लैब्स को बढ़ाने की आवश्यकता है. क्योंकि पिछले 10 सालों से टैक्स स्लैब्स में जो भी बदलाव किये गए हैं उसे 5 लाख रुपये से कम इनकम वाले लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बदला गया है. जिनलोगों की इनकम 20 फीसदी और 30 फीसदी के टैक्स स्लैब में आता है उनके लिए पिछले 10 सालों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. हालांकि पिछले दशक की तुलना में आज लोगों की आय के साथ-साथ आमदनी भी बढ़ी है इसलिए टैक्स ब्रेकेट्स को बढ़ाया जाना चाहिए और टैक्स को सभी इनकम लेवल के लिए कम किया जाना चाहिए.
कितना ज्यादा टैक्स भरते हैं लोग?
10 लाख रुपये का टैक्सेबल इनकम वाला कोई व्यक्ति आज एक्स्ट्रा टैक्स के रूप में 2333 रुपये प्रति महीने का भुगतान करता है. 25 लाख रुपये के टैक्सेबल इनकम पर टैक्सपेयर 15,661 रुपये प्रति माह ज्यादा भुगतान करता है. जबकि अगर कोई आदमी 50 लाख रुपये कमाता है तो वह 37,784 रुपये प्रति माह ज्यादा टैक्स भरता है. 30 फीसदी स्लैब में इन्फ्लेशन एडजस्टमेंट के बिना टैक्सपेयर 42-50 फीसदी की रियल रेट पर कर अदायगी करता है.
पुराना टैक्स ब्रैकेट काफी नहीं
पुरानी टैक्स रिजीम करदाताओं को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है. हालांकि इससे पता चलता है कि नया टैक्स ब्रेकेट ज्यादातर टैक्स टैक्सपेयर्स को लुभाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. वैसे देखा जाए तो नई टैक्स रिजीम में टैक्सपेयर्स को टैक्स की इन्फ्लेशन एडजस्टमेंट रेट तक पहुंचने में मदद करता है, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर करदाता पुरानी व्यवस्था को ही चुनते हैं.
(The writer is CEO, BankBazaar.com)