
President Donald Trump Impeachment: अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर 197 वोट के बदले 232 वोट से मुहर लगा दी है. यानी इस प्रस्ताव के पक्ष में 232 वोट पड़े और विपक्ष में 197 वोट पड़े. उनके खिलाफ यह प्रस्ताव कैपिटोल हिल में हिंसा मामले में अपने समर्थकों को उकसाने के लिए लाया गया था. इस प्रकार अमेरिकी इतिहास में वह पहले राष्ट्रपति हो गए जिन्हें दो बार महाभियोग मामला झेलना पड़ा. इस प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ डेमोक्रेट्स के वोट नहीं पड़े हैं बल्कि ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन के भी दस वोट पड़े.
6 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने समर्थकों से यूएस कैपिटोल पर हमले के लिए उकसाया था. इसकी वजह से वहां अव्यवस्था फैल गई और पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी थी. इस हिंसा में एक पुलिस ऑफिसर समेत पांच लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में ट्रंप की भूमिका को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था जिस पर अब मुहर लग गई है.
इंडो-अमेरिकन्स ने महाभियोग के पक्ष में किया वोट
अमेरिकी संसद द्वारा लाए महाभियोग के प्रस्ताव पर सभी चार इंडो-अमेरिकन हाउस मेंबर्स (सांसदों) ने पक्ष में वोट किया था. एमी बेरा, रो खन्ना, राजा कृष्णामूर्ति और प्रमीला जयपाल ने महाभियोग के पक्ष में वोट किया था. महाभियोग के पक्ष में 10 रिपब्लिकन ने भी वोट किया और पक्ष में कुल 232 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 197 वोट. चार सांसदों ने वोट में हिस्सा नहीं लिया.
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सीनेट में जाएगा महाभियोग प्रस्ताव
हाउस ऑफ प्रेजेंटेटिव से महाभियोग का प्रस्ताव पास होने के बाद इसे सीनेट में लाया जाएगा. वहां भी इसे लेकर मतदान होगा. अगर सीनेट में भी महाभियोग का प्रस्ताव पास हो जाता है तो डोनाल्ड ट्रंप को तय समय से पहले ही राष्ट्रपति का पद छोड़ना होगा. सीनेट 19 जनवरी तक के लिए स्थगित है और 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालेंगे.
2019 में भी ट्रंप के खिलाफ चला था महाभियोग
इससे पहले 18 दिसंबर 2019 को भी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ महाभियोग को मंजूरी दी थी. महाभियोग में आरोप लगाया गया था कि ट्रंप ने यूक्रेन पर जो बाइडेन की छवि खराब करने के लिए दबाव बनाया था. इसके लिए ट्रंप ने 40 करोड़ डॉलर (2927.28 करोड़ रुपये) की मिलिट्री ऐड लीवरेज के तौर पर यूक्रेन को दिया था. हालांकि यह प्रस्ताव सीनेट से फरवरी 2020 में खारिज हो गया, जहां रिपब्लिकन का बहुमत है.
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