चीन में एक भारतीय महिला प्रीति माहेश्वरी (Preeti Maheshwari) जिंदगी और मौत से लड़ रही हैं. 45 वर्षीय शिक्षिका प्रीति स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण की चपेट में आ गई हैं. शुरुआत में इसे चीन में फैले रहस्यमय एसएआरएस (सार्स) जैसे कोरोनावायरस से संक्रमण का मामला माना जा रहा था. चीन के वुहान और शेनजेन शहरों में यह तेजी से फैल रहा है. प्रीति शेनजेन के एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल में शिक्षिका हैं.
पिछले शुक्रवार को गंभीर रूप से बीमार होने के बाद उन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था. प्रीति के पति अशुमान खोवाल, जो पेशे से ट्रेडर हैं, ने कहा है कि माहेश्वरी का आईसीयू में इलाज चल रहा है और वह फिलहाल जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्ट सिस्टम) पर हैं. शुरुआत में ऐसा संदेह था कि माहेश्वरी कोरोनावायरस के नए प्रकार से ग्रस्त हैं. हालांकि, खोवाल ने स्पष्ट किया है कि उनकी पत्नी को स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण होने का पता चला है.
बेहद महंगा है इलाज
प्रीति का परिवार इस संक्रमण के महंगे इलाज की मार से जूझ रहा है. उनके इलाज पर प्रतिदिन का खर्च लाखों रुपये का है और कुल 1 करोड़ रुपये का खर्च आने वाला है. उनके भाई ने इलाज का खर्च जुटाने के लिए इंटरनेट के जरिए लोगों से मदद की अपील की है. प्रीति के भाई मनीष थापा ने Financial Express Online को बताया कि उन्होंने भारत के विदेश मंत्रालय से भी मदद के लिए संपर्क किया है लेकिन अभी तक भारत सरकार या चीन की सरकार से कोई सहयोग नहीं मिला है.
17 साल से हैं चीन में
मनीष के मुताबिक, प्रीति अपने पति के साथ चीन में पिछले 17 सालों से रह रही हैं. वहां सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चीन जन्म या रहने के आधार पर नागरिकता नहीं देता. प्रीति, उनके पति और उनके बच्चे कोई भी चीनी नागरिक नहीं हैं. इसलिए उनकी पहुंच पब्लिक हेल्थकेयर तक नहीं है.
मनीष ने बताया कि उन्होंने भारत में एक फंड रेजिंग पेज बनाया है क्योंकि उनकी बहन के चीनी नागरिक न होने के चलते वहां ऐसा नहीं किया जा सकता. प्रीति 10 दिनों से भी ज्यादा वक्त से लाइफ सपोर्ट पर हैं और उनकी रिकवरी को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि इसमें 30 से 60 दिन लग सकते हैं.
क्या है कोरोनावायरस?
कोरोनावायरस विषाणुओं का एक बड़ा समूह है लेकिन इनमें से छह ही लोगों को संक्रमित करते हैं. इसके सामान्य प्रभावों के चलते सर्दी-जुकाम होता है लेकिन एसएआरएस (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) ऐसा कोरोनावायरस है, जिसके प्रकोप से 2002-03 में चीन और हांगकांग में करीब 650 लोगों की मौत हो गई थी.