SC Verdict on EWS: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 10 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा है. EWS कोटा पर SC के 5 जजों में से 3 ने आरक्षण को संवैधानिक ठहराया. उन्होंने कहा कि यह संशोधन संविधान के मूल भावना के खिलाफ नहीं है. बता दें कि EWS कोटे में सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक आधार पर मिला हुआ है. इस फैसले को चुनौती दी गई थी.
आरक्षण से संविधान को नुकसान नहीं
जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है. साथ ही आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गई. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता, ईडब्ल्यूएस नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है. EWS के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता. हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS कोटा के खिलाफ अपनी राय रखी.
क्या है यह पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने आज 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है. इस संशोधन में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है. इस संशोधन के खिलाफ याचिकाओं पर बेंच ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखा था. याचिका में कहा गया था कि 103वां संविधान संशोधन के साथ धोखा है. जमीनी हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है. यह संशोधन सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला है. याचिका में ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को खत्म करने का प्रयास बताया गया था.
25% सीटें बढ़ाने के लिए निर्देश
इसके तहत सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को 25 फीसदी सीटें बढ़ाने के लिए निर्देश दिया है. 4,315.15 करोड़ स्वीकृत रुपये की लागत से कुल 2.14 लाख अतिरिक्त सीटें तैयार किए गए हैं. केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में कुल 2,14,766 अतिरिक्त सीटें तैयार करने की मंज़ूरी दी गई थी और उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 4,315.15 करोड़ रुपये खर्च करने की मंज़ूरी दी गई है.