
SBI Ecowrap Report on Farmer Protest: केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. इन कृषि कानूनों को लेकर अब देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की रिसर्च टीम ने अपनी Ecowrap रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह विरोध आर्थिक की बजाय राजनीतिक अधिक है. इसके अलावा इसमें कुछ रणनीतिक सुझाव भी दिए गए हैं जिससे फार्म बिल पर जारी गतिरोध खत्म हो सके. इनमें एमएसपी से लेकर एग्रीकल्चरल प्रॉडक्ट मार्केट कमेटी (APMC) को लेकर रणनीतिक सुझाव शामिल हैं.
इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक 11 दिसंबर तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर 55 फीसदी खरीफ फसलों की सरकारी खरीद पंजाब से हुई, जबकि धान उत्पादन में वह देश में तीसरे स्थान पर है. अगर खरीद की बात करें तो 11 दिसंबर तक चावल के सबसे बड़े उत्पादक पश्चिम बंगाल से इसकी खरीद नहीं हुई और दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से 8 फीसदी तक खरीद हुई है. आंध्र प्रदेश से सिर्फ 1 फीसदी खरीद हुई. पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों से 70 फीसदी खरीद हुई. इस प्रकार ये देख सकते हैं कि पश्चिम बंगाल जहां से कोई खरीद नहीं हुई और दिल्ली जहां धान की पैदावार नहीं होती, वे भी कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में यह विरोध राजनीति से प्रेरित लग रहा है.
SBI Ecowrap में दिए गए ये 5 सुझाव
एसबीआई की रिसर्च टीम ने अपनी इकोरैप रिपोर्ट में सरकार को पांच रणनीतिक प्वाइंट सुझाए हैं जिसके जरिए किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का समाधान किया जा सकता है.
- पहला सुझाव- किसानों की मांग के मुताबिक न्यूनतम समर्थन राशि (एमएसपी) की गारंटी देने की बजाय सरकार को पांच साल के लिए कानून में क्वांटिटी गारंटी क्लाॉज जोड़ना चाहिए. इसके तहत उत्पादन के मुकाबले प्रॉक्यूरमेंट का प्रतिशत कम से कम पिछले वर्ष के समान होना चाहिए. हालांकि इसमें बाढ़ या सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं को अपवाद माना जाएगा. एसबीआई की रिसर्च टीम ने अपनी जांच में पाया कि अब तक के ट्रेंड के अनुसार कुछ गेहूं उत्पादन का महज 25-35 फीसदी ही प्रॉक्यूरमेंट होता रहा है जिसमें सबसे अधिक हिस्सेदारी पंजाब और हरियाणा का होता है. इसकेअलावा सबसे अधिक प्रॉक्यूरमेंट तेलंगाना और केरल से भी होता है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह किसानों की चिंता को काफी हद तक कम करेगा.
- दूसरा सुझाव- एमएसपी को राष्ट्रीय कृषि बाजार (eNAM) पर फ्लोर प्राइस ऑफ ऑक्शन से बदला जाए. हालांकि, किसानों की समस्या का यह पूरी तरह समाधान नहीं कर पाएगा क्योंकि ई-नैम मंडियों में उड़द को छोड़कर अन्य सभी कमोडिटीज के औसत मॉडल प्राइस एमएसपी से कम है.
- तीसरा सुझाव- एपीएमसी मार्केट के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए. एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अनाजों की बुवाई और बुवाई के बाद नुकसान के मूल्य का आकलन करें तो यह करीब 27 हजार करोड़ बैठता है. तिलहन के लिए यह आंकड़ा 10 हजार करोड़ और दलहन के लिए 5 हजार करोड़ है. यानी इतने मूल्य के बराबर के अनाज, तिलहन और दलहन का नुकसान हुआ है.
- चौथा सुझाव- एसबीआई की रिसर्च टीम ने सुझाव दिया है कि भारत में एक कांट्रैक्ट फार्मिंग इंस्टीट्यूशन की स्थापना की जाए. सुझाव के मुताबिक इस इंस्टीट्यूट के पास कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए तय किए गए भाव को निरीक्षण करने का अधिकार होगा.कांट्रैक्ट फार्मिंग दुनिया के कई देशों में उत्पादकों (किसानों) को मार्केट व प्राइस स्टैबिलिटी के साथ सप्लाई चैन तक पहुंच सुनिश्चित कराया है और टेक्निकल असिस्टेंस भी उपलब्ध कराया है. थाइलैंड का उदाहरण देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य रूप से 52 फीसदी मार्केट स्टैबिलिटी और 46 फीसदी प्राइस स्टैबिलिटी के कारण वहां किसानों ने कांट्रैक्ट फार्मिंग में साझेदारी किया.
- पांचवा सुझाव- केसीसी के नियमों को रिविजिट करना जो बैंक के एग्री पोर्टफोलियो की क्षमता कम करतीा है. उदाहरण के लिए एसबीआई की रिसर्च टीम ने अपने मॉडल कैलकुलेशन में पाया कि अगर केसीसी नॉर्म्स को रिविजिट किया जाए तो किसानों की मासिक आय में 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है.
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