Maharashtra Crisis Explained : What Will Happen Now : महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 30 जून को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया है. माना जा रहा है कि राज्य के सियासी संकट का समाधान इस फ्लोर टेस्ट से ही निकलेगा. इस टेस्ट के बाद ही पता चल पाएगा कि बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे के इस दावे में कितना दम है कि महाराष्ट्र के 50 से ज्यादा विधायकों का समर्थन उनके साथ है.
फ्लोर टेस्ट से जुड़े कई ऐसे सवाल भी हैं, जिनके जवाब जानना पूरे मसले को ठीक से समझने के लिए जरूरी है. मसलन, फ्लोर टेस्ट आखिर होता क्या है? महाराष्ट्र में इसकी नौबत क्यों आई? महाराष्ट्र में गुरुवार को फ्लोर टेस्ट के दौरान क्या होने की संभावना है? क्या है बहुमत का वो आंकड़ा, जिसे पार करना ठाकरे सरकार को बचाने के लिए जरूरी है? और फिलहाल इस बात की कितनी संभावना दिख रही है कि उद्धव ठाकरे बहुमत की इस परीक्षा में पास हो पाएंगे?
क्या होता है फ्लोर टेस्ट?
किसी राज्य में फ्लोर टेस्ट कराए जाने का मतलब है विधानसभा के भीतर किया जाने वाला वह शक्तिपरीक्षण, जिससे पता चले कि मौजूदा मुख्यमंत्री के पास बहुमत के लिए जरूरी विधायकों का समर्थन है या नहीं? मुख्यमंत्री की कुर्सी तभी कायम रह सकती है, जब वह इस फ्लोर टेस्ट में पास हो जाए. इसमें फेल होने पर पद से इस्तीफा देकर सत्ता से बेदखल होना पड़ता है.
क्या होगी फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया?
फ्लोर टेस्ट के लिए मुख्यमंत्री को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए एक प्रस्ताव पेश करना होता है. इस प्रस्ताव पर सदन में मौजूद विधायक वोटिंग करते हैं. अगर वोट डालने वाले आधे से विधायकों ने सरकार के पक्ष में मतदान किया तो सरकार बच जाती है. लेकिन अगर वोट डालने वाले विधायकों का बहुमत मुख्यमंत्री के खिलाफ चला गया तो विश्वास मत हारने की वजह से उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है.
फ्लोर टेस्ट के दौरान कैसे होती है वोटिंग?
विश्वास प्रस्ताव पर विधानसभा में कई तरीकों से मतदान कराया जा सकता है. वॉयस वोट या ध्वनि मत में विधायक मौखिक रूप से यानी बोलकर प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में अपना वोट दर्ज करा सकते हैं. इसके अलावा विधायकों की सीट के सामने लगे बटन को दबाकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग भी कराई जा सकती है. ऐसा होने पर दोनों पक्षों के वोटों का विवरण एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड या स्क्रीन पर दिखाया जाता है. विधायकों की मांग पर वोटों का फिजिकल डिविज़न भी कराया जा सकता है, जिसमें बैलट बॉक्स में पर्ची डालकर मतदान किया जाता है, जिसकी बाद में गिनती की जाती है.
महाराष्ट्र में क्यों हो रहा है मतदान?
महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर महाविकास अघाड़ी के नाम से साझा सरकार बनाई है, जिसकी कमान शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथ में रही है. लेकिन करीब एक हफ्ते पहले शिवसेना के कई विधायकों ने पूर्व मंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी. ये विधायक तभी से महाराष्ट्र से बाहर डेरा डाले हुए हैं. पहले वे गुजरात के सूरत जा पहुंचे और फिर वहां से असम के गुवाहाटी में जाकर खुली बगावत का एलान कर दिया. इस दौरान बागी विधायकों की संख्या लगातार बढ़ी है. बागियों के नेता शिंदे का दावा है कि शिवसेना के 55 में से 39 विधायक उनके साथ हैं. इनके अलावा निर्दलीयों और कुछ छोटे दलों के विधायकों को मिलाकर वे 50 से ज्यादा एमएलए के समर्थन का दावा कर रहे हैं. इन बागियों ने अपना विधायक दल का नेता और चीफ व्हिप भी चुन लिया है. इस समर्थन के आधार पर वे खुद को असली शिवसेना भी बता रहे हैं.
क्या चाहते हैं शिवसेना के बागी विधायक?
शिवसेना के बागी विधायकों का कहना है कि वे एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाने के खिलाफ हैं. वे चाहते हैं कि शिवसेना महाविकास अघाड़ी का साथ छोड़कर बीजेपी से हाथ मिला ले. बागी विधायकों का कहना है कि हिंदुत्व की विचारधारा पर चलने के लिए एनसीपी और कांग्रेस का साथ छोड़ना जरूरी है. हालांकि वे यह नहीं बताते कि अगर उन्हें एनसीपी-कांग्रेस से इतनी एलर्जी थी, तो अब तक वे इन्हीं दलों के साथ मिलकर सत्ता सुख क्यों भोग रहे थे? शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस इस बगावत के पीछे बीजेपी की साजिश का आरोप लगा रहे हैं.
राज्यपाल से क्यों मिले देवेंद्र फडणवीस?
28 जून यानी मंगलवार की रात बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले और ठाकरे सरकार के अल्पमत में आने का दावा करते हुए फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की. इसके अगले दिन यानी बुधवार 29 जून को राज्यपाल ने 30 जून को सुबह 11 बजे फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दे दिया.
राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को क्या लिखा?
राज्यपाल ने बुधवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम लिखी चिट्ठी में कहा है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिवसेना के 39 विधायकों ने महाविकास अघाड़ी सरकार से अलग होने की इच्छा जाहिर की है. इसके अलावा 7 निर्दलीय विधायकों ने भी उन्हें ईमेल भेजकर कहा है कि मुख्यमंत्री ठाकरे सदन का विश्वास खो चुके हैं. राज्यपाल ने अपने पत्र में कहा है कि इन हालात में वे 30 जून को सुबह 11 बजे महाराष्ट्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का निर्देश दे रहे हैं, जिसका एक मात्र मकसद मुख्यमंत्री विश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराना होगा.
महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा क्या है?
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 विधायक होते हैं. लेकिन शिवसेना के एक विधायक का पिछले महीने निधन हो गया, जिसके बाद सदन की मौजूदा संख्या 287 रह गई. लिहाजा, बहुमत का जादुई आंकड़ा फिलहाल 144 का है.
क्या फ्लोर टेस्ट जीत पाएंगे ठाकरे?
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट जीत पाएंगे या नहीं, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि आखिरकार सदन के भीतर कितने विधायक उनका साथ देते हैं. मीडिया की खबरों में फिलहाल जो स्थिति दिख रही है वो कुछ इस तरह है :
- शिवसेना के 55 विधायकों में 39 फिलहाल एकनाथ शिंदे के साथ बताए जा रहे हैं.
- अगर ये आंकड़ा सही है, तो उद्धव ठाकरे को अब महज 16 शिवसेना विधायकों का समर्थन हासिल है.
- एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायकों को जोड़ दें तो महाविकास अघाड़ी के पास अब 113 विधायक बचे हैं.
- यानी उद्धव ठाकरे और बहुमत के बीच फिलहाल 31 विधायाकों का फासला नजर आ रहा है.
- विधानसभा में निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों की कुल संख्या 29 है. इनमें 10 शिंदे गुट के साथ हैं, जबकि 10 विधायकों का झुकाव बीजेपी की ओर है.
- इन हालात में उद्धव ठाकरे सरकार का फ्लोर टेस्ट में बहुमत हासिल कर लेना लगभग असंभव दिख रहा है.
फ्लोर टेस्ट और उसके बाद क्या होगा?
- विधानसभा सचिवालय फ्लोर टेस्ट के लिए सारे इंतजाम करेगा. – स्पीकर की गैर-मौजूदगी में सदन की कार्यवाही डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल की अध्यक्षता में होगी.
- अगर उद्धव ठाकरे विश्वास मत हार गए तो उन्हें इस्तीफा देना होगा.
- इसके बाद राज्यपाल अकेला सबसे बड़ा दल (single largest party) होने के नाते बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं.
- बीजेपी के पास 106 विधायक हैं. शिंदे गुट के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए या उन्होंने बीजेपी का समर्थन कर दिया तो उन्हें बहुमत मिलने की पूरी संभावना रहेगी. लिहाजा अगली सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.
- शिंदे गुट शिवसेना के दो-तिहाई से ज्यादा विधायकों के समर्थन के कारण दल-बदल कानून की चपेट में आने से तो बच जाएगा, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वो विधानसभा में अलग गुट के तौर पर बना रहेगा या उसका बीजेपी में विलय हो जाएगा.