Demand For Separate State in Tripura: त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने में अब एक महीने से भी कम समय बचा है लेकिन “ग्रेटर टिपरालैंड” की मांग ने एक बार फिर राज्य की फिजाओं को बदल दिया है. त्रिपुरा के शाही परिवार के वंशज, प्रद्योत देबबर्मा (Pradyot Manikya Debbarman)के नेतृत्व वाली पार्टी टिपरा मोथा (TIPRA MOTHA) त्रिपुरा के समुदायों को नई मातृभूमि का वादा करने उनका ध्यान अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रही है. बुधवार को, प्रद्योत के नेतृत्व में टिपरा मोथा पार्टी के कुछ लोगों ने नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बातचीत शुरू की. पिछले हफ्ते, भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर में पार्टी के संकटमोचक हिमंत बिस्वा सरमा को प्रद्योत के साथ बातचीत करने को कहा था. हालांकि प्रद्योत देबबर्मा अभी तक गठबंधन का कोई संकेत नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा है कि टिपरा मोथा किसी भी चुनाव पूर्व गठबंधन में शामिल नहीं होगा, जब तक कि अलग राज्य की उनकी मांग को लिखित रूप में स्वीकार नहीं किया जाता.
‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग क्या है?
प्रद्योत के अनुसार, ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ मौजूदा त्रिपुरा राज्य से अलग एक राज्य होगा. नई जातीय मातृभूमि मुख्य रूप से उस क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों के लिए होगी जो विभाजन के दौरान पूर्वी बंगाल से भारत आए बंगालियों की वजह से अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो गए थे. 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बंगाली लोगों की एक बड़ी संख्या ने त्रिपुरा में शरण ली. जनगणना 2011 के अनुसार, बंगाली त्रिपुरा में 24.14 लाख लोगों की मातृभाषा है जो यहां की 36.74 लाख आबादी में से दो-तिहाई है. प्रद्योत अलग राज्य की मांग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अलग राज्य आदिवासियों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा करने में मदद करेगा, जो बंगाली समुदाय के लोगों के आ जाने से अब अल्पसंख्यक हो गए हैं.
क्या टिपरा मोथा संवैधानिक तरीके से अलग राज्य की मांग उठाने वाली पहली पार्टी है?
नहीं. साल 2000 में गठित हुई इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने सबसे पहले यह मांग उठाई थी. IPFT को 2009 में एनस देबबर्मा ने पुनर्जीवित किया गया था, जो बाद में 1 जनवरी, 2022 को अपनी मृत्यु तक भाजपा-IPFT गठबंधन सरकार में मंत्री के रूप में काम करते रहे. 2021 में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएडीसी) में 28 में से 18 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद से आईपीएफटी के प्रभाव में गिरावट के साथ, टिपरा मोथा ने अलग राज्य के मांग को एक बार फिर सामने ला दिया है. IPFT वर्तमान में TIPRA मोथा के साथ विलय के लिए प्रद्योत के साथ बातचीत कर रहा है. 2021 के बाद से, IPFT के तीन विधायक और एक भाजपा विधायक TIPRA मोथा में शामिल हो गए हैं.
मांग का राजनीतिक प्रभाव कितना बड़ा है?
अगर टिपरा मोथा का बीजेपी या सीपीआई(एम)-कांग्रेस गठबंधन के साथ कोई प्री-पोल समझौता नहीं हो जाता है, तो इस बार त्रिपुरा में चुनाव त्रिकोणीय होना तय है. 2018 में, भाजपा ने 43.5 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ 36 सीटें जीतीं, उसके बाद सीपीआई (एम) को 42.2 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 16 सीटें मिलीं, जबकि आईपीएफटी ने आठ सीटें और 7.5 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. बता दें कि त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों में से 20 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2018 में, इनमें से आठ सीटों पर इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी), 10 सीटों पर बीजेपी और दो सीटों पर सीपीआई(एम) का कब्जा था.
Written by Sourav Roy Barman