रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकारी बैंकों के निजीकरण के मसले पर अपने बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख से जुड़ी खबरों पर स्पष्टीकरण जारी किया है. आरबीआई ने कहा है कि कुछ खबरों में इस लेख के हवाले से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि रिजर्व बैंक सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ है, जो कि सही नहीं है. रिजर्व बैंक का कहना है कि उसके बुलेटिन में छपे लेख में कही गई बातें लेखकों के निजी विचार हैं. उन्हें रिजर्व बैंक की राय नहीं मानना चाहिए.
आरबीआई ने इस बारे में शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा है, “मीडिया में आई कुछ खबरों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ बताया गया है. इन मीडिया रिपोर्ट्स में आरबीआई बुलेटिन के अगस्त 2022 अंक के एक लेख का जिक्र करते हुए यह बात कही गई है. प्राइवेटाइजेशन ऑफ पब्लिक सेक्टर बैंक्स : एन अल्टरनेट पर्सपेक्टिव (Privatisation of Public Sector Banks: An Alternate Perspective) शीर्षक से प्रकाशित यह लेख रिजर्व बैंक के शोधकर्ताओं ने लिखा है.”
रिजर्व बैंक के मुताबिक वह साफ करना चाहता है कि “इस लेख में लेखकों के निजी विचार दिए गए हैं, जो भारतीय रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. उस लेख में भी यह बात साफ तौर पर कही गई है.” इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने यह भी कहा है कि उसने अगस्त 2022 के अपने बुलेटिन के बारे में जो प्रेस रिलीज जारी की थी, उसमें साफ तौर पर कहा गया था कि निजीकरण के बारे में सरकार ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाने की जो नीति अपनाई है, उसकी वजह से वित्तीय समावेशन के सामाजिक लक्ष्य को हासिल करने में किसी तरह की रुकावट नहीं आ रही है.
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रिजर्व बैंक ने अपने बयान में इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया है कि खबरों में जिस लेख का जिक्र किया गया है, उसके अंतिम पैराग्राफ में लिखा गया है कि हमारी आर्थिक सोच निजीकरण को हर मर्ज़ की दवा मानने वाली पुरानी मान्यता से काफी आगे आ चुकी है, जिसमें इस बात को स्वीकार किया जाने लगा है कि इस रास्ते पर आगे बढ़ते समय ज्यादा सोच-समझकर और बारीकियों का ध्यान रखते हुए कदम उठाने की जरूरत है. इसमें यह भी कहा गया है कि हाल के दिनों में सरकारी बैंकों के ‘मेगा मर्जर’ की वजह से सेक्टर का कन्सॉलिडेशन हुआ है, जिससे ज्यादा मजबूत, दमदार और प्रतिस्पर्धी बैंक उभरकर सामने आए हैं.
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रिजर्व बैंक के मुताबिक उसके बुलेटिन में प्रकाशित लेख में यह भी कहा गया है कि इन बैंकों के प्राइवेटाइजेशन के बारे में ‘बिग-बैंग एप्रोच’ अपनाया जाना फायदे से ज्यादा नुकसान कर सकता है. सरकार पहले ही दो बैंकों के निजीकरण के अपने इरादे का एलान कर चुकी है. ऐसे ग्रैजुअल एप्रोच से यह सुनिश्चित होगा कि बड़े पैमाने पर निजीकरण की वजह से वित्तीय समावेशन (financial inclusion) और मॉनेटरी ट्रांसमिशन के महत्वपूर्ण सामाजिक लक्ष्यों को हासिल करने में किसी तरह की दिक्कत न हो. रिजर्व बैंक के बयान के मुताबिक इससे साफ जाहिर होता है कि लेख लिखने वाले शोधकर्ताओं का मानना है कि “बिग बैंग एप्रोच” की बजाय सरकार द्वारा घोषित ग्रैजुअल एप्रोच से बेहतर नतीजे हासिल होंगे.