Mutual Funds Industry Wish List Budget 2023: 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आम बजट 2023 पेश करेंगी. बजट 2023 से बाजार से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि यह 2024 के आम चुनाव से पहले आखिरी फुल बजट है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संकेत दिया है कि सरकार आगामी बजट में मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए सरकार कुछ प्रावधान कर सकती है. म्यूचुअल फंड की लोकप्रियता मिडिल क्लास में बढ़ रही है. ऐसे में इस इंडस्ट्री की भी बजट से काफी उम्मीदें हैं. PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड्स के CEO, अजीत मेनन बता रहे हैं कि इंडस्ट्री की विश लिस्ट में कौन सी बातें शामिल हैं. इसमें एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) की भी सिफारिशें शामिल हैं.
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म्यूचुअल फंड उद्योग का बढ़ रहा है आकार
नोटबंदी के बाद लोगों में बचत और निवेश को लेकर जागरुकता बढ़ी है और उस दौर में भारतीय परिवारों ने म्यूचुअल फंड को बड़े पैमाने पर अपनाया है. म्यूचुअल फंड उद्योग का आकार लगातार बढ़ रहा है. यह दिसंबर 2017 में 21.26 लाख करोड़ रुपये था, जो दिसंबर 2022 में 14 फीसदी की सीएजीआर से बढ़कर 40.76 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. दिसंबर 2022 तक, रिकॉर्ड 6.12 करोड़ एसआईपी फोलियो के साथ सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए निवेश 13,573 करोड़ रुपये रहा.
रिटायरमेंट स्कीम पर एक जैसा हो टैक्स
निजी क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से लोग आज रिटायरमेंट लक्ष्यों को पूरा करने के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. वर्तमान में, नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में निवेश करने पर आयकर अधिनियम की धारा 80CCD के तहत 50,000 रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट मिल रही है. म्युचुअल फंड इंडस्ट्री लंबे समय से मांग कर रही है कि म्युचुअल फंड रिटायरमेंट/पेंशन स्कीम को भी आयकर धारा 80CCD के दायरे में लाया जाना चाहिए, जिससे इनपर भी एनपीएस की तरह कर छूट का फायदा मिले.
म्यूचुअल फंड लिंक्ड रिटायरमेंट स्कीम
म्यूचुअल फंड को यूएस में 401(k) योजना के समान ही म्युचुअल फंड लिंक्ड सेवानिवृत्ति योजना (MFLRP) शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो टैक्स बेनेफिट के योग्य होगी. लंबी अवधि की बचत को चैनलाइज करने में कर इंसेंटिव महत्वपूर्ण हैं.
पेंशन फंड इंफ्रास्ट्रक्चर और लंबी अवधि की अन्य परियोजनाओं में धन के स्रोत के रूप में उभर सकते हैं. पेंशन फंड इक्विटी बाजार को गहराई प्रदान कर सकते हैं.
टैक्स आर्बिट्राज हटाया जाए
म्यूचुअल फंड ‘इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विड्रॉल (IDCW)’ जैसी कई सुविधाएं प्रदान करते हैं, जिन्हें पहले डिविडेंड प्लान, ग्रोथ ऑप्शन, डायरेक्ट और रेगुलर प्लान के रूप में जाना जाता था.
म्यूचुअल फंड निवेशक कभी-कभी ग्रोथ ऑप्शन से डिविडेंड ऑप्शन (या इसके विपरीत) और/या रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान (या इसके विपरीत) के बीच स्विच करते हैं. वर्तमान में, इस तरह के स्विच को आयकर अधिनियम 1961 के धारा 47 के तहत “ट्रांसफर” के रूप में माना जाता है. साथ ही ये कैपिटल गेंस टैक्स के लिए उत्तरदायी हैं. इसमें निवेश की गई राशि म्युचुअल फंड योजना में बनी रहती है और कोई वास्तविक लाभ नहीं होता है. इसकी वजह यह है कि सिक्योरिटीज/पोर्टफोलियो नहीं बदलता है.
दूसरी ओर यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) में एक फंड से दूसरे फंड में स्विच करने पर खास सुविधा है कि यह कैपिटल गेंस टैक्स के अधीन नहीं हैं. इसलिए मांग है कि एक जैसे प्रोडक्ट पर एक जैसा टैक्स बेनेफिट मिलना चाहिए और इसलिए इस टैक्स आर्बिट्राज टैक्स को समाप्त करने की आवश्यकता है.
अंतर्राष्ट्रीय निवेश की लिमिट पर क्या है डिमांड
सरकार को अंतर्राष्ट्रीय फंड ऑफ फंड्स कैटेगिरी में क्लेरिटी और कुछ छूट प्रदान करनी चाहिए, जिनकी मांग हाल में बढ़ी है. म्यूचुअल फंडों द्वारा विदेशी फंडों में कुल निवेश पर 700 करोड़ डॉलर की सीमा है. फॉरेन एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स में निवेश करने के लिए 100 करोड़ डॉलर की एक अलग सीमा है. सरकार को इंडस्ट्री की इक्विटी एसेट्स के 10 फीसदी पर विदेशी फंडों में म्युचुअल फंडों द्वारा कुल निवेश को सीमित करने के लिए एक खुली सीमा रखने पर विचार करना चाहिए. क्योंकि ऐसे फंडों की मांग बढ़ रही है.
फंड्स के इक्विटी फंड को टैक्सेशन के लिए घरेलू इक्विटी फंड के समान माना जाना चाहिए, क्योंकि इक्विटी फंड ऑफ फंड्स (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय) मुख्य रूप से घरेलू या विदेशी देशों में स्थित फंड में निवेश करते हैं, जहां अंडरलाइंग होल्डिंग्स स्टॉक हैं. वर्तमान में, फंड ऑफ फंड्स को टैक्सेशन के लिए डेट फंड के रूप में माना जाता है.