Food grain Procurement for Buffer Stock: देश में खाद्यान्न की खरीद (foodgrains procurement) की प्रक्रिया में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) और राज्य सरकार की एजेंसियों के अलावा बहुत जल्द निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी बड़े पैमाने पर शामिल किया जाएगा. मोदी सरकार की इस योजना की जानकारी केंद्र सरकार के फूड सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय ने दी है. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार जल्द ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को देश में बफर स्टॉक के लिए खाद्यान्न खरीद की प्रक्रिया में शामिल होने का न्योता देने जा रही है. उन्होंने बताया कि केंद्रीय खाद्य मंत्रालय सभी राज्य सरकारों को इस बारे में पहले ही पत्र लिख चुका है. उन्होंने यह बात रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की सालाना आम सभा को संबोधित करते हुए कही.
मोदी सरकार का राज्यों को कड़ा संदेश
पांडेय ने बताया कि मोदी सरकार ने सभी राज्य सरकारों को खाद्यान्न की खरीद के बारे में साफ तौर पर दो संदेश दिए हैं. पहला ये कि केंद्र सरकार राज्यों द्वारा की जाने वाली खाद्यान्न की खरीद के लिए अधिकतम 2 फीसदी तक आकस्मिक खर्च (incidental expenses) का ही भुगतान करेगी. राज्यों के लिए मोदी सरकार का दूसरा संदेश यह है कि उन्हें केंद्र सरकार के बफर स्टॉक के लिए खाद्यान्न की खरीद में निजी क्षेत्र को शामिल करना होगा. उन्होंने कहा कि सरकार की इस पहल का मकसद खाद्यान्न की खरीद पर आने वाली लागत को कम करना और एफिशिएंसी यानी दक्षता को बढ़ाना है. पांडेय ने बताया कि सरकार अगले सीज़न ने प्राइवेट कंपनियों को प्रोक्योरमेंट प्रॉसेस में शामिल होने के लिए न्योता देने जा रही है.
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2% से ज्यादा खर्च राज्यों को खुद उठाना होगा : पांडेय
खरीद की लागत घटाने पर जोर देते हुए पांडेय ने कहा कि हमने राज्यों को संदेश दे दिया है कि केंद्र सरकार 2 फीसदी से ज्यादा आकस्मिक व्यय (यानी खरीद से जुड़े अतिरिक्त खर्च) का बोझ नहीं उठाएगी. राज्य सरकारें चाहें तो खुद अपनी तरफ से ज्यादा खर्च कर सकती हैं. केंद्रीय खाद्य सचिव ने कहा कि फिलहाल प्रोक्योरमेंट कॉस्ट ज्यादा है, क्योंकि कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से 6 से 8 फीसदी तक टैक्स और चार्जेज़ लगा दिए हैं, जिसका भुगतान अब तक केंद्र सरकार कर रही है.
सिस्टम नहीं सुधारा तो केंद्र 2% आकस्मिक खर्च भी नहीं देगा : पांडेय
केंद्र सरकार के फूड सेक्रेटरी ने कहा कि कुछ प्रदेशों में खरीद की प्रक्रिया बेहतर ढंग से संचालित की जा रही है, लेकिन बहुत से राज्यों में ऐसा नहीं है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर राज्यों ने प्रोक्योरमेंट सिस्टम में सुधार नहीं किया तो केंद्र सरकार उन्हें 2 फीसदी का आकस्मिक खर्च (incidental expenses) भी नहीं देगी. उन्होंने कहा कि राज्यों को पता है कि ऑपरेशनल सिस्टम को बेहतर और मजबूत बनाने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि इसीमें सबका फायदा है.
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प्राइवेट सेक्टर बेहतर ढंग से खरीद करता है : पांडेय
केंद्रीय फूड सेक्रेटरी ने कहा कि सरकार खाद्यान्न की खरीद की प्रक्रिया में प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल करना चाहती है. सिर्फ एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियां ही खरीद क्यों करें?” पांडेय ने कहा कि वे हाल ही में इंटरनेशनल ग्रेन्स कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे, जहां उन्हें पता चला कि प्राइवेट कंपनियां खरीद का काम ज्यादा बेहतर तरीके से कर रही हैं. अगर निजी कंपनियां खाद्यान्न की खरीद का काम मौजूदा एजेंसियों के मुकाबले कम लागत और बेहतर दक्षता के साथ कर सकती हैं तो इसमें सरकार को कोई एतराज नहीं है. उन्होंने कहा, “हमने राज्यों को लिखा है कि केंद्र सरकार खरीद की प्रक्रिया एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियों के अलावा प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल करना चाहती है.
उन्होंने बताया कि एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियां हर साल बफर स्टॉक के लिए 9 करोड़ टन खाद्यान्न की खरीद करती हैं, जबकि मांग 6 करोड़ टन की होती है. मौजूदा व्यवस्था के तहत खाद्यान्न, मुख्य तौर पर गेहूं और चावल, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आधार पर सीधे किसानों से खरीदे जाते हैं. इस अनाज के बड़े हिस्से का वितरण कल्याणकारी योजनाओं के तहत गरीबों में किया जाता है.
(इनपुट : पीटीआई)