
brent crude oil share price: कच्चे तेल में इस साल लगातार तेजी आ रही है. 1 जनवरी से अबतक ब्रेंट क्रूड करीब 30 फीसदी महंगा हो चुका है. 25 फरवरी को सुबह 11 बजे तक ब्रेंट क्रूड का भाव 67 डॉलर प्रति बैरल के पार बना हुआ है. बीते 1 साल की बात करें तो यह 24 फीसदी महंगा हो चुका है. 1 जनवरी को कच्चा तेल 50 डॉलर प्रति बैरल के आस पास था, जो अब बढ़कर 67 डॉलर पर पहुंच गया है. एक्सपर्ट मान रहे हैं कि कच्चे तेल की यह तेजी आगे भी कायम रहेगी. कई एजेंसियां और एक्सपर्ट अगले महीने तक क्रूड के 70 डॉलर पर पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. फिलहाल कच्चे तेल की तेजी से कई ऐसी कंपनियों के शेयरों पर दबाव बन सकता है, जो रॉ मटेरियल में इसका इस्तेमाल करती हैं.
FY21 के अंत तक में ब्रेंट 70 डॉलर प्रति बैरल!
एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी एंड करंसी), अनुज गुप्ता का कहना है कि कच्चे तेल में तेजी के पीछे बड़ा कारण यह है कि लॉकडाउन खुलने के साथ दुनियाभर में ज्यादातर देशों में अर्थव्यवस्था पर काम जोर पकड़ रहा है. इससे कच्चे तेल की मांग बढ़ी है. टूरिज्म इंडस्ट्री और एविएशन इंडस्ट्री में रिकवरी से भी क्रूड की कीमतों को सपोर्ट मिल रहा है. दूसरी ओर ओपेक देश प्रोडक्शन कंट्रोल किए हुए हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़े. ग्लोबल इकोनॉमिक रिकवरी तेज होती है तो क्रूड और महंगा हो सकता है. अनुमान है कि माच तक ब्रेंट 70 डॉलर और WTI क्रूड 67 डॉलर का स्तर छू सकता है.
क्रूड में तेजी से इन कंपनियों के शेयर चढ़े
केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि क्रूड में तेजी से अपस्ट्रीम कंपनियों को फायदा होता है. क्रूड में जैसे जैसे तेजी आ रही है, रिफाइनिंग कंपनियों की चमक बढ़ सकती है. जैसा कि इस साल देखने को मिला है. इससे ONGC, आयल इंडिया और GAIL जैसे शेयरों को फायदा होगा. इस साल 1 जनवरी से अबतक की बात करें तो ओएनजीसी का शेयर 93 रुपये से बढ़कर 120 रुपये के करीब पहुंच गया है. वहीं GAIL का शेयर 123 रुपये से 150 रुपये पर पहुंच गया है. वहीं आयल इंडिया का शेयर भी इस दौरान 108 रुपये से 128 रुपये का हो गया है.
उनका कहना है कि क्रूड में तेजी आने से ओएमसी के अलावा रॉ मटेरियल के रूप में क्रूड का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को नुकसान होता है. इसमें पेंट, प्लास्टिक, फर्टिलाइजर और शिपिंग कंपनियां शामिल हैं.
किन शेयरों पर बढ़ सकता है दबाव
क्रूड में तेजी आने का नुकसान जिन कंपनियों को होता है, उससे OMC, एविएशन कंपनियों, पेंट कंपनियों, रबड़ व टायर कंपनियों के अलावा एफएमसीजी कंपनियां शामिल हैं. क्रूड की ज्यादा कीमत से एटीएफ के दाम बढ़ते हैं. MRF जैसी टायर कंपनियों की लागत का 25-30 फीसदी हिस्सा पेट्रो प्रोडक्ट से आता है, ऐसे में क्रूड में तेजी से इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों को महंगे रॉ मटेरियल के रूप में नुकसान होगा. रबर और नायलन टायर कॉर्ड के दाम भी बढ़ते हैं.
सिंटेक्स इंडस्ट्रीज, नीलकमल और सुप्रीम इंडस्ट्रीज जैसी प्लास्टिक पर डिपेंड रहने वाली कंपनियों को भी महंगे क्रूड का नुकसान हो सकता है. डीसीडब्ल्यू, फिलिप्स कार्बन, गोवा कार्बन और नोसिल जैसे शेयरों पर भी दबाव बढ़ सकता है.
पेंट कंपनियों का भी 25 से 30 फीसदी रॉ मटेरियल पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से आता है. इसलिए इनके मार्जिन पर भी दबाव देखने को मिल सकता है. इसमें एशियन पेंट, कंसाई नेरोलैक जैसी कंपनियां हैं. एफएमसीजी प्रोडक्ट्स की लागत में भी खासा हिस्स पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का होता है. पैकेजिंग में भी इसका इस्तेमाल होता है. एचयूएल, गोदरेज कंज्यूमर और डाबर जैसी एफएमसीजी कंपनियों पर भी इसका असर दिख सकता है.
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