
महाशय दी हट्टी (MDH) के मालिक और मसाला किंग के नाम से मशहूर महाशय धरमपाल गुलाटी का गुरुवार को 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. ‘असली मसाले सच-सच, एमडीएच’ की बदौलत घर-घर में जाना-पहचाना चेहरा बन चुके धरमपाल गुलाटी इस देश में शरणार्थी के रूप में भारत आए थे और यहां तांगेवाले के रूप में शुरुआत की थी.
पाकिस्तान के सियालकोट से यहां आकर धरमपाल गुलाटी ने अपने पारिवारिक कारोबार को दोबारा शुरू किया. उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचने के वक्त तक गुलाटी बहुत सक्रिय थे और वे हर दिन एमडीएच के कारखाने, बाजार और डीलर के पास जाते थे. इसके अलावा अपने मसालों के विज्ञापन में भी वे नजर आते थे. आइए जानते हैं कि सियालकोट से लेकर दिल्ली का उनका सफर कैसा रहा.
पांचवी कक्षा तक ही पढ़े थे गुलाटी
गुलाटी का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च 1923 को हुआ था. शिक्षा की बात करें तो उन्होंने 1933 में पांचवी कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. 1937 में पिता की मदद से उन्होंने शीशे, साबुन और कारपेंटरी की एक छोटा कारोबार शुरू किया. धीरे-धीरे उन्होंने अपने छोटे से कारोबार को बढ़ाया और कपड़े व हार्डवेयर की बिक्री भी शुरू की. विस्तार के बावजूद उनका कारोबार लंबे समय तक नहीं चल सका और वे अपने पारिवारिक कारोबार से जुड़ गए. उनका पारिवारिक कारोबार मसाले बनाने का था. वे महाशियान दी हट्टी के नाम से मसालों का कारोबार करते थे, जिसे देगी मिर्च वाले भी कहते थे.
आजादी के बाद शरणार्थी के रूप में आए भारत
अगस्त 1947 में देश के बंटवारे के बाद वह परिवार सहित सितंबर 1947 में भारत की राजधानी दिल्ली आए. एमडीएच की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक 27 सितंबर 1947 को उनकी जेब में महज 1500 रुपये थे. इस राशि में 650 रुपये से उन्होंने एक तांगा खरीदा और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बड़ा हिंदू राव तक सवारियां ढोने लगे. कुछ दिनों के बाद उन्होंने करोल बाग के अजमल खां रोड पर एक छोटी सी दुकान (गुमटी) खरीदी और मसालों का अपना पारिवारिक कारोबार शुरू किया.
पहली फैक्ट्री कीर्ति नगर में स्थापित की
गुलाटी ने करोल बाग में मसालों की एक दुकान करोल बाग में खोला था. इसके बाद 1953 में उन्होंने चांदनी चौक में दूसरी दुकान खोली. 1959 में गुलाटी ने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एमडीएच के मैनुफैक्चरिंग प्लांट की स्थापना की. धर्मपाल के मसाले की दुकान के बारे में जब लोगों को यह पता चला कि सियालकोट के देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं, उनका कारोबार फैलता चला गया.
MDH के कार्यालय लंदन और दुबई में भी
एमडीएच मसालों का कारोबार धीरे-धीरे दिल्ली से बाहर न सिर्फ देश भर में फैलता गया बल्कि देश के बाहर भी इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई. आज यह 100 से भी अधिक देशों में इस्तेमाल किया जाता है. एमडीएच मसालों के सबसे बड़े ब्रांड में से एक है और 50 विभिन्न प्रकार के मसालों का उत्पादन करता है. एमडीएच के कार्यालय न सिर्फ भारत में बल्कि दुबई और लंदन में भी हैं. एमडीएच के 60 से अधिक उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन सबसे अधिक बिक्री देगी मिर्च, चाट मसाला और चना मसाला का होता है.
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