
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी टेलिकॉम ऑपरेटर ने दूसरे से ट्रेडिंग के जरिए स्पेक्ट्रम अधिग्रहित किए हैं, तो पिछला बकाया क्लियर करना होगा. अगर स्पेक्ट्रम का विक्रेता बकाया क्लियर नहीं करता है, तो खरीदार को उसे चुकाना होगा. इसका मतलब है कि रिलायंस जियो को रिलायंस कम्युनिकेशंस से खरीदे स्पेक्ट्रम के लिए एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया का भुगतान करना पड़ सकता है. इसके साथ भारती एयरटेल को भी एयरटेल और वीडियोकॉन के बकाया के हिस्से का भुगतान करना पड़ सकता है क्योंकि उसने 2300 MHz और 1800 MHz बैंड को खरीदा था.
24 अगस्त को अगली सुनवाई
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच वर्तमान में दिवालिया टेलिकॉम ऑपरेटर से जुड़े एजीआर के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है जिसमें रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरसेल शामिल हैं. इसका मललब है कि अगर ये कंपनियां इनसोल्वेंसी प्रक्रिया के जरिए अपना स्पेक्ट्रम बेच रही हैं, तो सरकार के AGR बकाया को भी बिक्री की मंजूरी से पहले चुकाना होगा. अदालत मामले की आगे सुनवाई 24 अगस्त को करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि AGR बकाया को स्पेक्ट्रम से रिकवर किया जा सकता है. यह दूरसंचार विभाग की स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग गाइडलाइंस में मौजूद है जिसमें कहा गया है कि खरीदार को स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग के लिए किसी समझौते को पूरा करने से पहले अपने सभी बकाया को चुकाना होगा. इसके बाद ट्रेड की प्रभावी तारीख तक कोई बकाया जो रिकवर किया जाना है, वह खरीदार का दायित्व होगा.
सरकार को राशि रिकवर करने का अधिकार
सरकार को अपने विवेक पर राशि को रिकवर करने का हक है, जो ट्रेड की प्रभावी तारीख के बाद रिकवर की जानी है, जिसके बारे में पार्टियों को ट्रेड की प्रभावी तारीख को नहीं पता था. वह इसे खरीदार या विक्रेता से संयुक्त तौर पर या अलग-अलग कर सकती है.
इसमें आगे कहा गया है कि विक्रेता के लाइसेंस से जुड़ी अगर कोई मांग पर अदालत रोक लगाती है, तो वह ऐसे मुकदमे के फैसले के आधार पर होगा.
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