
Indian Union Budget 2021-22 Expectations: कोरोना वायरस महामारी के चलते अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर साल 2020 बेहद दबाव वाला रहा है. बीते साल लॉकडाउन की वजह से जहां डिमांड बेहद कमजोर हुई, बहुत से लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है. जॉब और इम्प्लॉयमेंट के मामले में भी अभी भी स्थिति नॉर्मल नहीं हुई है. ऐसे में इस बार बजट से बेहद उम्मीदें हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि बजट 2021 आगे अर्थव्यवस्था की ग्रोथ के लिए एक रोडमैप साबित हो सकता है. उनकी उम्मीद है कि इस बार बजट ग्रोथ ओरिएंटेड होगा और मैन्युफैक्चरिंग समेत ऐसे सेक्टर्स पर सरकार का फोकस हो सकता है, जिससे ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर बन सकें.
ग्रोथ ओरिएंटेड बजट की उम्मीद
PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड के CIO (फिक्स्ड इनकम), कुमारेश रामकृष्णन का कहना है कि बजट से हमारी प्रमुख उम्मीद है कि यह ग्रोथ ओरिएंटेड हो. नई नौकरियां पैदा करने के अर्थव्यवस्था में भारी निवेश की जरूरत है. निवेश की साइकिल तो वास्तव में कोरोना वायरस महामारी से पहले ही सुस्त हो गई थी, लेकिन अब उसमें कुछ अच्छे संकेत दिख रहे हैं. पिछले 2साल से दबी हुई मांग और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और आपूर्ति चेन की तरह कंपनियों को आकर्षित करने के सरकारी प्रयास से इसमें मदद मिली है. इसकी वजह से बहुत सी कंपनियां अपनी रणनीति में बदलाव कर चीन+1 मॉडल पर काम कर रही हैं.
उनका कहना है कि बजट में सरकार मैन्युफैक्चरिंग बेस को बढ़ाने के लिए कुछ बडा एलान कर सकती है. असल में मैन्युफैक्चरिंग बड़े पैमाने पर नौकरी देने वाला सेक्टर है. आदर्श रूप से देखें तो निर्माण, किफायती मकान, रियल एस्टेट (कॉमर्शियल सहित), पर्यटन, बुनियादी ढांचा (खासकर सड़कें, रेलवे) को वित्तीय प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. ये ऐसे सेक्टर हैं, जिनमें कि सबसे ज्यादा मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है. यहां ग्रोथ आने से रोजगार के ज्यादा मौके निकलते हैं.
MSME / SME
कुमारेश रामकृष्णन का कहना है कि जिन अन्य सेक्टर पर ध्यान देना जरूरी है, वे MSME / SME हैं. ऐसा अनुमान है कि भारत में करीब 6.5 लाख छोटे उद्यम हैं, जो कृषि के बाद सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाला सेक्टर है. ऐसी प्रमुख MSME/ SME में फिर से विकास को रफ्तार लाने में मदद के लिए नीतियां बनानी काफी महत्वपूर्ण हैं, जो बड़ी कंपनियों की सप्लाई चेन में शामिल हैं.
GDP में गिरावट का अनुमान, इन सेक्टर्स को भी मिले मदद
वित्त वर्ष 2021 के रियल जीडीपी में 7 से 8.5 फीसदी तक की बड़ी गिरावट आने का अनुमान है, जो भारत के इतिहास में सबसे कम जीडीपी रेट होगा. फेवरेबल बेस इफेक्ट और आर्थिक गतिविधियों के फिर से पटरी पर लौटने को देखते हुए अगले वर्ष में रियल जीडीपी 8-9 फीसदी और नॉमिनल जीडीपी 12.5-13.5 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है. आर्थिक गतिविधियों के पटरी पर लौटने के बावजूद कई ऐसे सेक्टर हैं, खासकर सेवाओं में, जो अब भी बुरी तरह प्रभावित हैं. इनमें हॉस्पिटलिटी, टूरिज्म, रेस्टोरेंट, एंटरटेनमेंट और एविएशन शामिल हैं. ऐसे में इन सेक्टर को भी मदद मिलनी चाहिए.
खर्च में संतुलन भी जरूरी
कुमारेश रामकृष्णन के अनुसार नए साइकिल में केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय को 4 लाख करोड़ से बढ़ाकर 5.5 लाख करोड़ रुपये तक करना होगा, ताकि जरूरी शुरुआती गति बन सके. राज्यों को भी आवंटन करना होगा क्योंकि बुनियादी ढांचे पर ज्यादातर खर्च राज्यों के स्तर पर होता है. चुनौतीपूर्ण सकल राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की चुनौती को देखते हुए कुल खर्च में काफी संतुलन बनाकर रखना होगा. राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2022 में 5 फीसदी को पार हो सकता है (वित्त वर्ष 2021 में यह 7.5 फीसदी हो सकता है, जबकि बजट लक्ष्य 3.5 फीसदी था.) राज्यों और केंद्र का मिलाकर राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2022 में 11 से 12 फीसदी तक पहुंच सकता है.
2020 रहा बेहद कमजोर साल
असल में भारत ने आंकड़ों के हिसाब से भी अब तक के सबसे कमजोर साल का सामना किया है, जो कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित रहा है. महामारी के शुरुआती महीनों से जून तक आर्थिक गतिविधियों में भारी गिरावट आई, इसके बाद सितंबर के बाद धीरे-धीरे इसमें सुधार हुआ. हालांकि भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है कि यहां अन्य यूरोपीय देशों और कुछ पूर्वी एशियाई देशों की तरह कोरोना की दूसरी लहर नहीं आई है.
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