Economic Survey 2023-24 Main Highlights: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने आज आर्थिक सर्वेक्षण 2023 को संसद के पटल पर रखा. बजट से एक दिन पहले संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में अर्थव्यवस्था की खुशनुमा तस्वीर पेश की गई है. सर्वे में कहा गया है कि इंडियन इकॉनमी कोविड के कारण आई आर्थिक सुस्ती से उबर गई है और हर सेक्टर में बड़े पैमाने पर रिकवरी देखने को मिली है.
सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी में भारत शामिल
इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष (FY23) के दौरान देश की जीडीपी विकास दर 7 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि अगले कारोबारी साल (FY24) के दौरान यह दर 6 से 6.8 फीसदी के बीच रह सकती है. आर्थिक सर्वे में कह गया है कि FY24 में विकास की रफ्तार पिछले दो वित्त वर्षों (2021-22 और 2022-23) के मुकाबले भले ही कम रहे, फिर भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी में भारत की जगह बरकार रहेगी. आइए देखते हैं आर्थिक सर्वेक्षण की कुछ बड़ी बातें –
आर्थिक सर्वेक्षण की खास बातें
- FY23 में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट (GDP Growth Rate) 7 फीसदी रहने के आसार हैं. इसके मुकाबले पिछले वित्त वर्ष यानी FY22 में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 8.7 फीसदी रही थी.
- FY24 में देश की जीडीपी विकास दर 6 से 6.8 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है. हालांकि यह अनुमान दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक हालात पर भी निर्भर है.
- ग्रोथ रेट में गिरावट के अनुमान के बावजूद दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी में भारत की जगह बनी रहेगी.
- बेसलाइन नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान यह 11 फीसदी रहेगी.
- FY24 के दौरान रियल टर्म्स में देश की बेसलाइन जीडीपी ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है.
- पीपीपी (PPP – Purchasing Power Parity) के हिसाब से भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है.
- मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2022-23 के दौरान केंद्र सरकार 7.5 लाख करोड़ के कैपिटल एक्सपेंडीचर (CAPEX) के लक्ष्य को हासिल कर लेगी. इसका असर प्राइवेट सेक्टर के कैपेक्स पर भी नजर आने लगा है.
- FY23 के पहले 8 महीनों के दौरान कैपेक्स में 63.4 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है.
- मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान महंगाई दर अप्रैल 2022 में 7.8 फीसदी तक चली गई थी, जो आरबीआई के 4 से 6 फीसदी के दायरे की ऊपरी लिमिट से काफी अधिक है. फिर भी दुनिया के बाकी देशों की तुलना में भारत की महंगाई दर काबू में रही है.
- आरबीआई के मुताबिक मौजूदा पूरे वित्त वर्ष के दौरान महंगाई की दर औसतन 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है, लेकिन यह इतनी अधिक नहीं है कि प्राइवेट कंजप्शन पर इसका बुरा असर पड़े. न ही यह महंगाई दर इतनी कम है कि निवेश करने के लिए प्रोत्साहित न करे.
- सर्वे के मुताबिक महंगाई दर के अड़ियल रुख की वजह से ब्याज दरों में तेजी का दौर जारी रह सकता है. जिसके चलते कर्ज लेने की लागत (Borrowing cost) भी लंबे समय पर ऊंची बनी रह सकती है.
- सप्लाई की कमी के कारण खाने-पीने की चीजों – खास तौर पर दालों और मसालों की कीमतें निकट भविष्य (near term) में ऊंची बनी रहेंगी. चारे की कीमतों में तेजी के कारण दूध की कीमतें भी बढ़ने के आसार हैं. अंतरराष्ट्रीय माहौल भी फूड प्राइसेस में तेजी के रिस्क को बढ़ाने वाला है.
- इकनॉमिक सर्वे को तैयार करने वाले चीफ इकनॉमिक एडवाइजर वी अनंत नागेश्वरन ने सर्वेक्षण पेश किए जाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट की चुनौती लगातार बनी हुई है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत ब्याज दरें (policy rates) बढ़ाने पर हालात और भी मुश्किल हो जाते हैं.
- करेंड एकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़ने की वजह से भी रुपये पर दबाव बढ़ सकता है. हालांकि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार (forex reserves) मौजूद है, जिनका इस्तेमाल करके रुपये को संभाला जा सकता है.
- जुलाई-सितंबर 2019 में देश में बेरोजगारी की दर 8.3 फीसदी थी, जो जुलाई-सितंबर 2022 में घटकर 7.2 फीसदी हो गई. इसके साथ ही लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट (LFPR) में भी सुधार हुआ है. इससे पता चलता है कि इकॉनमी कोरोना महामारी के कारण आई मंदी से उबर चुकी है.
क्यों महत्वपूर्ण है आर्थिक सर्वेक्षण
बजट से एक दिन पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण में देश की आर्थिक हालत की विस्तृत तस्वीर के साथ ही साथ भविष्य के रोडमैप की झलक भी मिलती है. सर्वेक्षण के आंकड़े यह संकेत भी देते हैं कि नए साल का बजट तैयार करते समय केंद्र सरकार के सामने अर्थव्यवस्था की क्या तस्वीर रही है, कहां हो रहा है खर्च और कहां से हो रही है आमदनी.