How to Understand Budget Speech: अगले वित्त वर्ष यानी 2022-23 का बजट अगले महीने की पहली तारीख यानी एक फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी. बजट में वित्त वर्ष के दौरान सरकार की कमाई और खर्च के ब्यौरे के साथ अर्थव्यस्था को सहारा देने वाली घोषणाएं होती हैं. इसमें वित्तीय घाटा, विनिवेश और बैलेंस ऑफ पेमेंट जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है. ऐसे में बजट को समझने के लिए जरूरी है कि इसमें इस्तेमाल होने वाले शब्दों का अर्थ समझ ले. नीचे बजट की पूरी शब्दावली के बारे में आसान भाषा में जानकारी दी जा रही है.
वित्त वर्ष (Financial year)
आमतौर पर हम सभी जनवरी से दिसंबर तक एक वर्ष मानते हैं लेकिन सरकारी काम-काज वित्त वर्ष के हिसाब से होते हैं. भारत में वित्त वर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल से होती है, जो अगले साल 31 मार्च को खत्म होता है. यानी सरकार, बैंकों, कंपनियों इत्यादि का नया खाता 1 अप्रैल से खुलता है, जिसमें अगले साल 31 मार्च तक एंट्री होती है.
ब्लू शीट (Blue Sheet)
बजट डॉक्यूमेंट के सैकड़ों पेज और प्रमुख आंकड़ों वाले नीले रंग के सीक्रेट शीट को ब्लू शीट कहते हैं. यह बजट प्रक्रिया का बैकबोन है और इसे गुप्त रखा जाता है, यहां तक कि वित्त मंत्री से भी.
आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey)
आमतौर पर बजट से ठीक एक दिन पहले सरकार संसद में इकनॉमिक सर्वे पेश करती है. इसमें अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर पेश की जाती है और देश की आर्थिक सेहत का पूरा लेखा-जोखा होता है. इसके जरिए सरकार देश को अर्थव्यवस्था की हालत के बारे में बताती है. इसमें साल भर में विकास का क्या ट्रेंड रहा, किस क्षेत्र में कितनी पूंजी आई, विभिन्न योजनाएं किस तरह लागू हुईं इत्यादि इन सभी बातों की जानकारी होती है. इसमें सरकारी नीतियों की जानकारी होती है. आर्थिक सर्वे को बजट का मुख्य आधार माना जाता है. हालांकि इसकी सिफारिशें सरकार लागू ही करे, ऐसा जरूरी नहीं होता है.
जीरो बजट (Zero Budget)
जीरो बजट का मतलब है कि इसमें पिछले वित्त वर्ष का कोई बैलेंस या खर्च कैरी फॉरवर्ड नहीं किया जाता है. इसका मतलब ऐसे समझें कि अगर किसी सरकारी योजना के तहत सांसदों को करोड़ों रुपये आवंटित किए गए हैं लेकिन इसका कुछ ही हिस्सा खर्च हो पाया है तो वे शेष पैसे को उन्हें फिर आवंटित किया जाना जरूरी नहीं है. नए सिरे से फिर जहां जरूरत होगी, वहां पैसे आवंटित किए जाएंगे.
प्रत्यक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर (Direct/Indirect Taxes)
आय और मुनाफे पर सरकार जो टैक्स वसूलती है, वह डायरेक्ट टैक्स है और जो टैक्स गुड्स व सर्विसेज पर वसूलती है, वह इनडायरेक्ट टैक्स है. इनडायरेक्ट टैक्स को ऐसे समझ सकते हैं जैसे कि आपने बाजार से कोई सामान खरीदा है तो आप जो कीमत चुका रहे हैं, उसमें टैक्स भी शामिल है.
जीएसटी और एक्साइज ड्यूटी (GST & Excise duty)
GST यानी गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स का मतलब है किसी वस्तु या सेवा पर देश भर में लगने वाला एक समान टैक्स. इसके अलावा राज्यों में कुछ वस्तुओं पर उत्पाद कर लगता है, जिसकी दर हर राज्य में अलग-अलग होती है. शराब पर लगने वाला टैक्स इसी का एक उदाहरण है. 30 जून 2017 से पहले देश में ज्यादातर वस्तुओं पर उत्पाद कर ही लगता था, लेकिन 1 जुलाई 2017 को देश में जीएसटी की व्यवस्था लागू होने के बाद ज्यादातर वस्तुएं उसके दायरे में आ चुकी हैं.
कस्टम ड्यूटी (Customs Duty)
कस्टम ड्यूटी को आयातक या निर्यातक उन चीजों पर चुकाते हैं जिसे देश में आयात या निर्यात किया जाता है. इसका असर आम लोगों पर ऐसे पड़ता है कि अगर सरकार ने गोल्ड पर इस ड्यूटी को बढ़ा दिया तो ज्वैलरी महंगी हो सकती है क्योंकि अब आपको अधिक टैक्स चुकाना होगा.
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राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
जब सरकार का कुल खर्च उसकी कुल आय यानी रेवेन्यू से अधिक हो जाता है तो उसे उधार लेकर घाटे का बजट तैयार करना पड़ता है. सरकार के कुल खर्च और कुल रेवेन्यू के इस अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं. कुल रेवेन्यू की गणना करते समय उसमें उधार की रकम को नहीं जोड़ा जाता है. राजकोषीय घाटे को किसी सरकार की आर्थिक हालत और उसकी राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) का सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा माना जाता है.
राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
जब सरकार को मिलने वाले राजस्व से अधिक राजस्व का खर्च हो जाता है तो इसे राजस्व घाटा कहते हैं. इसका मतलब होता है कि हर दिन के हिसाब-किताब के लिए सरकार की कमाई पर्याप्त नहीं है.
राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
देश के आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने और उन पर निगरानी रखने के लिए टैक्सेशन के जरिए खर्च और रेवेन्यू में तालमेल बिठाने के लिए सरकार जो फैसले लेती है, उसे राजकोषीय नीति कहते हैं. जबकि मौद्रिक नीति (Monetary Policy) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा यानी करेंसी की मांग और सप्लाई को मैनेज करने के लिए तैयार की जाती है.
महंगाई दर (Inflation)
इंफ्लेशन का मतलब है किसी इकॉनमी में महंगाई के बढ़ने या घटने की दर या रफ्तार. इंफ्लेशन बढ़ने का मतलब है चीजों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसे हमारी करेंसी यानी रुपये की क्रय शक्ति यानी वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की ताकत कम होती है. सरकारें अपनी आर्थिक नीतियां बनाते समय इसे ध्यान में रखती हैं.
बजट एस्टीमेट्स/रिवाइज्ड एस्टीमेट्स (Budget Estimates/Revised estimates)
पूरे वित्त वर्ष में टैक्स के जरिए सरकार को कितनी कमाई होगी और सरकार कितना खर्च करेगी, इसे बजट एस्टीमेट्स कहते हैं. हालांकि बजट पेश होने के बाद सरकार वित्त वर्ष के शेष दिनों में आय और खर्च को रिव्यू करती है और फिर एस्टीमेट्स करती है जिसे रिवाइज्ड एस्टीमेट्स कहते हैं.
कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया (Consolidated fund of India)
पूरे वित्त वर्ष में सरकार को जो भी रेवेन्यू हासिल होता है, जो भी पैसे उधार लिए जाते है और लोन मिलते हैं, वे कंसॉलिडेटेड फंड में जाते हैं. कंटिजेंसी फंड या पब्लिक अकाउंट से जु़ड़े कुछ खर्चों के अलावा सरकार के अन्य सभी खर्चों के लिए इसी फंड से पैसे मिलता है लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार बिना संसद की मंजूरी के इस फंड से पैसे नहीं निकाल सकती है.
कंटिजेंसी फंड ऑफ इंडिया (Contigency fund of India)
राष्ट्रपति इस फंड का इस्तेमाल किसी आकस्मिक खर्चे के लिए करते हैं. इसमें करीब 500 करोड़ रुपये होते हैं. इस निधि से पैसा निकालने के लिए संसद की इजाजत की जरूरत नहीं होती है लेकिन इस निधि का गठन संसद ही करती है यानी कि संसद ही तय करती है कि इस निधि में कितना पैसा होगा.
विनिवेश (Disinvestment)
जब सरकार अपने किसी एसेट्स या सब्सिडियरी को पूरी तरह या आंशिक रूप से बेचती है या लिक्विडेट करती है तो इसे विनिवेश कहते हैं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि सरकार के पास अगर किसी कंपनी की 100 फीसदी हिस्सेदारी है और अगर इसमें सरकार अपनी 25 फीसदी हिस्सेदारी किसी को बेचती है तो यह विनिवेश है.
संतुलित बजट (Balanced Budget)
जब किसी वित्त वर्ष के लिए सरकार ऐसा बजट पेश करती है जिसमें रेवेन्यू के बराबर खर्च दिखाया गया है तो इसे संतुलित बजट कहते हैं.
चालू खाते का घाटा (Current Account Deficit)
इससे देश की कारोबारी स्थिति का पता चलता है. अगर निर्यात अधिक है और आयात के जरिए देश से बाहर जाने वाले पैसे से अधिक पैसा देश में आता है तो स्थिति अनुकूल है और इसे चालू खाता अधिशेष के रूप में जाना जाता है. लेकिन अगर आयात के जरिए देश से बाहर जाने वाला पैसा, निर्यात के एवज में आने वाले पैसे से ज्यादा है तो इसे चालू खाते का घाटा कहते हैं.
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
Gross Domestic Product (GDP) को हिंदी में सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं. यह एक वित्त वर्ष के दौरान देश की सीमा के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ने से हासिल होता है. पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी जिस रफ्तार से बढ़ती या घटती है, उसे अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी ग्रोथ रेट कहते हैं. यह देश की आर्थिक प्रगति को मापने का एक लोकप्रिय तरीका है.