How to understand key terms used in Budget 2023 : वित्त मंत्री का बजट भाषण साल के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक दस्तावेजों में शामिल होता है. लेकिन इस भाषण में कई ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनके अर्थ कई बार समझ में नहीं आते. ऐसे कुछ प्रमुख शब्दों के अर्थ जान लें तो बजट भाषण को समझना आसान हो जाएगा.
एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट (Annual Financial Statement)
यूनियन बजट को एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट (AFS) भी कहा जाता है. इसका मतलब है किसी खास वित्त वर्ष के दौरान होने वाले खर्च (expenditure) और प्राप्तियों (receipts) का लेखा जोखा. संविधान के आर्टिकल 112 के तहत केंद्र सरकार के लिए संसद के सामने अपना AFS पेश करना अनिवार्य है. बजट में मौजूदा वित्त वर्ष के विवरण के साथ ही अगले वित्त वर्ष का एस्टिमेट यानी अनुमान भी दिया जाता है, जिसे बजट एस्टिमेट्स (BE or budget estimates) कहते हैं. अगले वित्त वर्ष का ये बजट संसद से पारित होना जरूरी है. संसद के अप्रूवल के बिना केंद्र सरकार कन्सॉलिडिटेड फंड ऑफ इंडिया (Consolidated Fund of India) में जमा पैसे खर्च नहीं कर सकती.
राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
राजकोषीय नीति या फिस्कल पॉलिसी में सरकार की टैक्स पॉलिसी, टैक्स से होने वाली आमदनी और खर्चों का ब्योरा और अनुमान शामिल होते हैं. यह देश की आर्थिक हालत का संकेत देने वाला एक प्रमुख जरिया है. सरकार अपने खर्चों की प्लानिंग और टैक्स रेट्स में एडजस्टमेंट जैसे काम फिस्कल पॉलिसी के तहत ही करती है. देश में गुड्स और सर्विसेज की कुल डिमांड, रोजगार, महंगाई दर और आर्थिक विकास पर फिस्कल पॉलिसी का सीधा असर पड़ता है. मिसाल के तौर पर आर्थिक सुस्ती की हालत में सरकार टैक्स की दरें घटाकर और खर्चे बढ़ाकर इफेक्टिव डिमांड और आर्थिक विकास दर को बढ़ावा देने का काम करती है.
मॉनेटरी पॉलिसी (Monetary Policy)
विकास दर, डिमांड और महंगाई दर जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रभावित करने वाली दूसरी अहम नीति है मॉनेटरी पॉलिसी (Monetary Policy), जिसके निर्धारण की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की होती है. मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए रिजर्व बैंक देश में मनी सप्लाई और ब्याज दरों को प्रभावित करता है.
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
सरकार के कुल खर्च (total expenditure) अगर कुल राजस्व (total revenue) से ज्यादा हो जाएं तो उसे घाटा उठाना पड़ता है. खर्च और राजस्व के बीच के इस निगेटिव अंतर को ही राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) कहते हैं. राजकोषीय घाटे को कैलकुलेट करते समय सरकार के बाहरी कर्जों (external borrowings) को जोड़ा नहीं जाता है. फिस्कल डेफिसिट रेशियो को सही स्तर पर रखना सरकार के लिए जरूरी होता है, क्योंकि इसके बेकाबू होने का सरकार की आर्थिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. लेकिन ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए कई बार सरकारों को जानबूझकर फिस्कल डेफिसिट का ऊंचा स्तर बरकरार रखना पड़ता है.
करेंट एकाउंट डेफिसिट (Current Account Deficit)
करेंट एकाउंट डेफिसिट (Current Account Deficit) को हिंदी में चालू खाते का घाटा भी कहते हैं. यह देश के अंतरराष्ट्रीय व्यापार (Internationa Trade) यानी निर्यात-आयात (Export-Import) की हालत का संकेत देता है. आमतौर पर भारत के कुल एक्सपोर्ट की वैल्यू कुल इंपोर्ट की वैल्यू से ज्यादा होती है. यह अंतर ही व्यापार घाटे और चालू खाते के घाटे की वजह है.
रेवेन्यू डेफिसिट (Revenue Deficit)
सरकार को रेवेन्यू डेफिसिट (Revenue Deficit) का सामना तब करना पड़ता है, जब उसकी वास्तविक नेट इनकम या रेवेन्यू जेनरेशन संभावित नेट इनकम (projected net income) से कम होती है. ऐसा उस हालत में होता है, जब सरकार के वास्तविक रेवेन्यू और एक्सपेंडीचर की रकम, बजट में अनुमानित रेवेन्यू और एक्सपेंडीचर की राशि से मेल नहीं खाती. रेवेन्यू डेफिसिट से यह भी पता चलता है कि सरकार अपनी रेगुलर इनकम की तुलना में कितना अधिक खर्च कर रही है.
पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)
पूंजीगत व्यय या कैपिटल एक्सपेंडीचर (Capital Expenditure) का मतलब उन खर्चों से है, जो सरकार नए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने, नए फिजिकल एसेट्स या उपकरण खरीदने या उन्हें अपग्रेड करने जैसे कामों पर खर्च करती है. यह लॉन्ग टर्म खर्च हैं, जिनका लाभ लंबे समय में जाकर मिलता है. सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, बांधों और बिजली घरों के निर्माण जैसे काम सरकार के कैपिटल एक्सपेंडीचर के प्रमुख उदाहरण हैं.
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST)
वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में सरकार की आमदनी का ब्योरा देते समय गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (Goods and Services Tax – GST) का जिक्र कर सकती हैं, लेकिन इसमें कोई भी फेरबदल बजट के जरिए नहीं किया जाता. ऐसा इसलिए क्योंकि जीएसटी के स्लैब और स्ट्रक्चर से जुड़े सारे फैसले जीएसटी काउंसिल (GST Council) की बैठकों में लिए जाते हैं, जिनमें राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों की अहम भूमिका होती है. 1 जुलाई 2018 को लागू किए जाने के बाद से जीएसटी सरकार की आमदनी का प्रमुख जरिया बन चुका है.
कस्टम ड्यूटी (Customs duty)
कस्टम ड्यूटी (Customs duty) वस्तुओं के एक्सपोर्ट या इंपोर्ट पर लगाई जाती है. इसका बोझ आखिरकार इन वस्तुओं के एंड यूजर पर ही पड़ता है. कस्टम ड्यूटी को अब तक जीएसटी (GST) के दायरे से बाहर रखा गया है. लिहाजा सरकार बजट के जरिए इनमें फेर-बदल कर सकती है.