Budget Terms Explained: इनकम टैक्स व्यक्तिगत रूप से भरते हैं, कॉरपोरेट टैक्स कंपनियां भरती हैं. ये डायरेक्ट टैक्स हैं, जिन्हें ज़्यादातर लोग समझते हैं क्योंकि सरकार इन्हें करदाता या कंपनी से डायरेक्ट यानी सीधे तौर पर वसूल करती है. हालांकि टैक्स की एक और कैटेगरी है, जिसे हम सब देते तो हैं, मगर कई बार ऐसा महसूस नहीं करते कि हमने कोई टैक्स दिया है. ऐसा इसलिए कि हम यह टैक्स सीधे तौर पर यानी डायरेक्ट सरकार को नहीं देते. यह टैक्स आमतौर पर वस्तुओं या सेवाओं की कीमतों में छिपा होता है. यह इनडायरेक्ट टैक्स हम सब देते हैं.
आय और मुनाफे पर सरकार जो टैक्स वसूलती है, वह डायरेक्ट टैक्स है और जो टैक्स गुड्स व सर्विसेज पर वसूलती है, वह इनडायरेक्ट टैक्स है. इनडायरेक्ट टैक्स को ऐसे समझ सकते हैं जैसे कि आपने बाजार से कोई सामान खरीदा है तो आप जो कीमत चुका रहे हैं, उसमें टैक्स भी शामिल है.
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Direct Tax
- डायरेक्ट टैक्स को सरकार प्रत्यक्ष रूप से आय और मुनाफे पर वसूल करती है. भारत में इनकम टैक्स, सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स और कैपिटल गेन टैक्स इसके तहत आते हैं. इनकम टैक्स किसी वित्त वर्ष में हुई कमाई पर देना होता है.
- सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) शेयरों की खरीद-बिक्री पर चुकाना होता है. शेयरों की खरीद-बिक्री पर आपको मुनाफा हो या नुकसान, सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स चुकाना ही होता है.
- इनकम टैक्स और एसटीटी के अलावा कैपिटल गेन्स टैक्स भी सरकार डायरेक्ट वसूलती है. किसी प्रॉपर्टी की बिक्री या इंवेस्टमेंट्स से एग्जिट पर हुए मुनाफे पर यह टैक्स चुकाना होता है. होल्डिंग पीरियड के हिसाब से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स या लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होता है.
- कंपनियां कारोबार से हुए लाभ पर कॉरपोरेट टैक्स देती हैं.
Indirect Tax
- डायरेक्ट टैक्स को आय व मुनाफे पर सरकार को दिया जाता है जबकि गुड्स व सर्विसेज पर सरकार इनडायरेक्ट टैक्स वसूलती है. डायरेक्ट टैक्स सरकार को प्रत्यक्ष रूप से चुकाया जाता है.
- कस्टम ड्यूटी को आयातक या निर्यातक उन चीजों पर चुकाते हैं जिसे देश में आयात या निर्यात किया जाता है. इसका असर आम लोगों पर ऐसे पड़ता है कि अगर सरकार ने गोल्ड पर इस ड्यूटी को बढ़ा दिया तो ज्वैलरी महंगी हो सकती है क्योंकि अब आपको अधिक टैक्स चुकाना होगा.
- भारत में बनने वाली चीजों पर एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है. 30 जून 2017 के पहले तक अधिकतर गुड्स इसके तहत आती थीं लेकिन जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) आने के बाद इसके तहत तंबाकू उत्पाद, हवाई ईंधन, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल-डीजल शामिल हैं यानी कि इन चीजों पर अभी भी एक्साइज ड्यूटी लगती है. एक्साइज ड्यूटी का असर आम लोगों पर ऐसे पड़ता है कि इसके चलते ही महंगे तेल की मार आम लोगों को झेलनी पड़ रही है. पेट्रोल और डीजल के लिए जो भाव हम सभी चुकाते हैं, उसमें लगभग आधा हिस्सा टैक्स का होता है.
- किसी गुड्स या सर्विसेज की सप्लाई पर इंडिविजुअल्स या कारोबारियों को जीएसटी चुकानी होती है. हम हर दिन इस्तेमाल होने वाली जो भी चीजें खरीदते हैं, उसमें एक हिस्सा जीएसटी का होता है.