Budget 2022 Expectations for Real Estate: कोरोना महामारी के असर से देश का दूसरा सबसे अधिक रोजगार देने वाला रीयल एस्टेट सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है. ऐसे में आने वाले वित्त वर्ष 2022-23 के बजट से इस सेक्टर को राहत की उम्मीद है जो इसे सहारा दे सके. अगले वित्त वर्ष का बजट एक फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी. इस बजट से रीयल एस्टेट सेक्टर को आयकर में छूट के अलावा रीएल एस्टेट सेक्टर को मजबूती देने के लिए कई अहम घोषणाओं की उम्मीद है जैसे कि अफोर्डेबल हाउसिंग की परिभाषा में बदलाव हो और इसे इंडस्ट्री का स्टेटस दिया जाए. रियल्टी सेक्टर मजबूत होने से रोजगार के भी मौके बढ़ेंगे और घर खरीदारों को रियायत देने से घरों की मांग बढ़ेगी.
आयकर में छूट और अफोर्डेबल हाउसिंग की सीमा को बढ़ाने की मांग
अंतरिक्ष इंडिया ग्रुप के सीएमडी राकेश यादव के मुताबिक रीयल एस्टेट सेक्टर का देश की जीडीपी में करीब 8 फीसदी का योगदान है. उनकी मांग है कि बजट में सस्ते घरों पर मिलने वाली 1.50 लाख रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट सीमा को कम से कम एक साल के लिए बढ़ा दिया जाए. इसके अलावा आयकर की धारा 24(बी) के तहत होम लोन पर ब्याज की कटौती की सीमा मौजूदा 2 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये की जाए. उन्होंने कोरोना के बाद बदलते जरूरत को देखते हुए अफोर्डेबल हाउसिंग को परिभाषा में भी बदलाव की मांग की है यानी कि अभी अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए 45 लाख रुपये ही सीमा है जिसे बढ़ाकर नॉन-मेट्रो शहरों में 75 लाख रुपये तक के घर और मेट्रो में 1.50 करोड़ रुपये के घर को अफोर्डोबल हाउसिंग के कैटगरी में शामिल किया जाना चाहिए.
रीयल एस्टेट को उद्योग का दर्जा देने की मांग
राकेश यादव ने वित्त मंत्री से रीयल एस्टेट को उद्योग का दर्जा देने की मांग की है. रीयल एस्टेट सेक्टर को उद्योग का दर्जा नहीं मिलने से बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से लोन महंगे ब्याज दर पर मिलता है और लोन मिलने में भी समस्या आती है. इंडस्ट्री स्टेटस देने से रीयल एस्टेट के साथ घर खरीदारों को भी अप्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा. डेवलपर्स सस्ते घर देने में सक्षम हो पाएंगे. इसके अलावा उन्होंने इस सेक्टर के लिए एक स्ट्रेस फंड की मांग की है.
‘Net Zero’ लक्ष्य में योगदान पर टैक्स बेनेफिट्स, अंडर-कंस्ट्रक्शन पर जीएसटी राहत
Colliers India के प्रमुख व सीनियर निदेशक (रिसर्च) विमल नाडर के मुताबिक अगर कोई डेवलपर्स ऐसा कॉमर्शियल और आवासीय बिल्डिंग्स बना रहा है जिससे ‘नेट जीरो कॉर्बन’ के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल रही है तो उन्हे मुनाफे पर टैक्स देनदारी पर एक समय तक एग्जेंप्शन और अन्य टैक्स इंसेंटिव जैसे बेनेफिट्स दिए जा सकते हैं. नेट जीरो का मतलब है कि नेट कॉर्बन उत्सर्जन शून्य हो यानी कि जितना कॉर्बन उत्सर्जित हो रहा है, उतना पूरा एब्जॉर्ब हो जाए. इसके अलावा उनकी मांग है कि ऐसे समय में जब आवासीय सेक्टर में मजबूती दिख रही है और यह कोरोना महामारी के प्रतिकूल प्रभाव से उबर रही है, अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स पर जीएसटी में राहत दी जाए जिससे बिक्री बढ़ाने में मदद मिलेगी.
क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) के तहत घर अपग्रेड की मिले सुविधा
REPL के सीएमडी प्रदीप मिश्र के मुताबिक कोरोना महामारी के चलते लोग 1बीएचके से 2बीएचके, 2बीएचके से 3बीएचके यानी अपने घर को अपग्रेड कर रहे हैं. ऐसे में मिश्र ने प्रधानमंत्री आवास योजना की क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) के तहत अपग्रेडेशन का मंजूरी दिए जाने की मांग की है. उन्होंने सीमेंट, स्टील, टिंबर, फिनिशिंग मैटेरियल जैसे कच्चे माल पर जीएसटी घटाने की सिफारिश की है जिससे घर की लागत कम करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा प्रदीप मिश्र ने रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस की मांग की है. अभी किसी प्रोजेक्ट का क्लियरेंस हासिल करने के लिए कई अथॉरिटी के पास जाना होता है जिसमें बहुत समय लगता है. ऐसे में अगर एक नोडल एजेंसी बनाई जाए तो न सिर्फ डेवलपर्स को बल्कि घर खरीदारों को भी फायदा पहुंचेगा.